शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

मेरी कहानीःअजमेर से शुरुआत

मैं विपिन बिहारी गोयल पुत्र स्वर्गीय श्री कुञ्ज बिहारी गोयल उम्र ५५ वर्ष पेशा राजस्थान लेखा सेवा साकिन अजमेर फिलहाल चोपासनी हाऊसिंग बोर्ड ,जोधपुर ईश्वर को हाजिर नाज़िर मान कर पूरे होशो हवाश में अपनी कहानी लिख रहा हूँ .अगर इसमें आपका जिक्र है तो ये आपकी खुश किस्मती है. मैंने कुछ नागवार लम्हों और लोंगों को नजरअंदाज किया है और कुछ मामूली लगने वाली बातों को तब्जजोह दी है .क्या करूँ मैं हूँ ही ऐसा.आप पढेंगे तो खुद समझ जायँगे.


कहानी तो वो होती है जिसमें कल्पना के रंग होते है,रोचकता होती है.कौन चाहेगा ऐसी कहानी पढना जिसमें सब कुछ फीका फीका हो कहानी की शुरुआत १९ जून १९५४ से होती है जब अजमेर में तांगे यातायात का मुख्य साधन थे परन्तु उस दिन सडके वीरान थी सारे तांगे कोतवाली की तरफ जा रहे थे .माजरा यह था कि अजमेर पुष्कर रोड पर एक सूखे कुऍ में लोहे के बक्से में एक लाश मिली थी॓ लाश की पहचान एक दुकान के मुनीम के रुप मे हुई थी आखिर यह बक्सा कुऐ तक कैसे पहुंचा बस इसी तहकिकात के लिये सभी तांगेवालों को थाने में बुलाया गया था

जब कोइ तांगे वाला अस्पताल चलने को तैयार नही हुआ तो सामने के कोठारी भवन में रहने वाले भाईसाह्ब से आग्रह किया गया और इस तरह अपने जन्म से कुछ समय पहले में कार से अस्पताल पहुचां ।हम लोग उस समय पाल बिछला पर बने रेल्वे के बंगले में रह्ते थे,जहां मेरा सबसे मासुम बचपन बीता।

सन १९७३ में इसी बंगले में पहली बार उस लडकी से मिला जो बाद में मेरी जीवन संगनी बनी ।

बाद में सन १९७५ में इसी बगंले में पापा का सेवा निवॄति समारोह हुआ था पर तब तक पापा पालनपुर,आबु रोड,मारवाड जंक्शन,गांधीधाम, काडंला की परिकर्मा कर चुके थ॓।

बहरहाल मूनीम की हत्या के सभी मुलजिम पकडे गये ।हत्या क्यौं हुइ,किसने की,और इसका क्या अंजाम हुआ यह एक अलग कहानी है ।जिसे पापा से अनेक बार विस्तार से सुनने के बाद भी कूछ अंश ही याद है॓।मसलन हत्या अमीर घराने के तीन नवयुवकों ने पैसे के लालच मैं कि थी । उनमें से एक सोगानीजी का लडका था जो पापा के परिचित थे । उसे उच्चतम न्यायालय से फांसी की सजा हूई थी परन्तु माननीय राष्टपति महोदय ने दया की प्रार्थना पर उम्र कैद में बदल दिया था ।

जन्म के बाद के चार वर्ष मैंने उसी बंगले में गुजारे जो मेरे जीवन के बहुत बेह्तरीन साल थे बंगले के बाहर एक चाय वाले की केबीन थी जंहा चाय के अलावा टोस्ट और नमकीन बिस्कीट भी मिलते थे ।

चाय की केबिन के मालिक थे रामू काका ।और उसके सामने था स्टूडीयो एक्सेल्सियर जिसके मालिक थे खन्ना सिंह उर्फ छोटे भाई ।बहूत छोटा होते हुए भी मूझे सारी घटनाऐ इस तरह याद हैं जैसे कल की बात हो।मेरे परदादा बद्रिलाल गोयल ऐरनपुरा छावनी में कन्टोन्मेन्ट कमेटि के चेयरमेन थे।धार्मिक पुस्तकॉ के अध्ययन एवं विवेचन के लिये उन्हें वृन्दावन में धर्म मनिषि कि उपाधि से अलंकृत किया गया था ।उस जमाने में दो घोडों की फिटिन में सवारी करते थे।जो की हवेली के सामने वाले बाडे में खडी रहती थी॓।उनके दो पुत्र हुऐ रामप्रताप जी एवं मोतीलाल जी ।रामप्रताप जी के एक पुत्र हुआ जगदीश प्रशाद जी एवं मोतीलाल जी के दो पुत्र हुए कुन्ज बिहारी लाल जी एवं मोहन लाल जी ।

छोटे भाई और अम्मा ने मुझे अपने बच्चों से बढ कर प्यार किया।मेरी हर जिद को पूरा किया जाता पर साथ ही अच्छी आद्तें भी सिखाई जाती थी ।ब्रश करने से लेकर सच बोलने तक ।खन्ना परिवार राजपूत था और परिवार के सभी सद्स्यों को मुझ से यह बुलवाने का शौक था कि मैं भी राजपुत हुं । इसके लिये मुझे तरह तरह के प्रलोभन भी दिये जाते थे॓। छोटे भाई की लडकी का नाम था निन्नी ।वो उस समय जब मैं तीन चार साल का था लगभग बीस साल की थी । जहां तक मुझे याद है वे बहुत ही सुदंर थी ।मुझे साईकिल पर बिठा कर अपनी सहेली के घर ले जाती थी जिसके यहां शहतूत का पेड था ।

छोटे भाई के परिवार से हमारे परिवार की अन्तरगंता से अगर कोई नये समीकरण उपजे हों तो मैं उससे नितान्त अनभिज्ञ था क्यों की उस समय तक मुझे दुनियादारी की कोई समझ नहीं थी ।कुछ समय बाद पापा की बदली पालनपुर हो गयी और हमारा पूरा परिवार बोरिया बिस्तर समेट कर पालनपुर के लिये कूच कर गया ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. vipin ji achhi kahaani likhi he. mai bahut pasand karta hun. aapko padte rahne ki ichha he.
    सादर,

    माणिक
    आकाशवाणी उद्घोषक,स्पिक मैके कार्यकर्ता,अध्यापक

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  2. "दो किस्म के शुन्य हैं इक विराट शून्य और इक लघु शून्य"

    accha laga aapko padhna..

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