मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

I became Book lover

रेलवे बिसिट की लाइब्रेरी से जो उपन्यास मैंने सबसे पहले इशू करवाया उसका नाम था "उल्टा वृक्ष ". उस समय मैं चौथी कक्षा में पढता था.उसकी कहानी मुझे आज भी याद है.मेरी उम्र का ही एक बच्चा एक बीज बोता है जिससे एक उल्टा वृक्ष पैदा होता है.पूरा पेड जमीन के अन्दर है.बच्चा पेड़ के सहारे नीचे उतरता है.हर शाखा पर एक नया शहर है जिसकी अपनी अलग ही संस्कृति है.वास्तव में यह एक दर्शन था.इसके बाद में पंचतंत्र की कहानियां पढ़ी.इस तरह मुझे बचपन से गहरे भाव वाली पुस्तकों का शौक लग गया जो अब ५८ वर्ष की उम्र तक कायम है.अब तक मैं लगभग तीन हजार पुस्तकों का अध्ययन कर चूका हूँ .इससे पहले हमारे घर पर बच्चों के लिए "चंदा मामा" और "पराग" पत्रिकाएं मंगाईजाती थी जिसका एक एक शब्द हम लोग चाट जाते थे.हर कहानी को कई कई बार पढ़ा जाता था.माँ को जासूसी उपन्यास का शौक था,पर हम बच्चों को पढने की मनाई थी .फिर भी ऐसा कोई नावेल नहीं था जो मैंने चोरी छिपे न पढ़ डाला हो.कक्षा चार से सात तक ,जब तक मैं गांधीधाम में था ,मैंने रेलवे बिसिट की लाइब्रेरी को खंगाल डाला.इसके अलावा वंहा पुरानी मैगज़ीन भी इशू की जाती थी.इस तरह से मैंने किताबों की दुनिया में कदम रख दिया.इसके फायदे और नुकसान दोनों हुए .फायदा तो यह हुआ की धीरे धीरे दुनिया के हर विषय की जानकारी हो गयी.नुकसान यह हुआ की सिर्फ किताबे ही मेरी दोस्त बनकर रह गयी.वास्तविक दुनिया से मेरा संपर्क कट सा गया.मैं अधिकांश समय एक कल्पना लोक में विचरण करने लगा.सन २००० के बाद इन्टरनेट की दुनिया ने तो यथार्थ जगत से जैसे मेरा नाता ही तुडवा दिया और यह कल्पना लोक ही मेरा जीवन बन गया.

1 टिप्पणी:

 
Shelfari: Book reviews on your book blog